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हिसार उपचुनाव की कसौटी पर अन्ना और कांग्रेस

अन्ना हजारे ने हिसार सीट के उपचुनाव के दौरान कांग्रेस को वोट न देने की बात कहकर एक और उथल पुथल मचा दी है। चुनाव के मुहाने पर खड़ी कांग्रेस के लिए अन्ना को संतुष्ट करना बेहद जरूरी है इसलिए वह हर तरह से अन्ना को मनाने में लगी है। वहीं दूसरी तरफ अन्ना द्वारा कांग्रेस के प्रति अन्ना की नाराजगी का फायदा दूसरे राजनीतिक दल अपने हित में देख रहे हैं। इसी वजह से 13 अक्टूबर को हिसार के लोकसभा उपचुनाव कांग्रेस और अन्ना दोनो ही के लिए कड़ी चुनौती बन गया है।



 हालांकि 2009 के बाद कांग्रेस को इस सीट पर सफलता नहीं मिली है, लेकिन इस बार इस सीट पर हो रहा उपचुनाव हार जीत से ज्यादा है। अगर अन्ना की वोट न देने की अपील के बावजूद भी कांग्रेस इस सीट पर जीत गई तो अन्ना को मिल रहे जनसर्मथन की पोल खुल जाएगी। लेकिन अगर इसके विपरित अन्ना की आंधी में कांग्रेस यहां उड़ गई तो अन्ना आंदोलन की ताकत सामने आ जाएगी। इस चुनाव की बयार में राजनीति के विद्वान आने वाले परिवर्तन को सूंघना चाहते हैं।

जनलोकपाल विधेयक को पारित कराने की मांग के प्रभाव में अन्ना और उनकी टीम कांग्रेस का विरोध कर रहे हैं, लेकिन अब कई सवाल उठने लगे है कि क्या भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश में सत्तारूढ़ राजनीतिक दल पर इस तरह दबाव बनाना सही है, टीम अन्ना के सदस्य पहले से कहते आ रहे हैं कि अन्ना किसी राजनीतिक दल के पक्ष या विपक्ष में नहीं हैं, बल्कि वे व्यवस्था सुधारना चाहते हैं। लेकिन क्या कांग्रेस को राजनीतिक नुकसान पहुंचाने के इरादे से किसी क्षेत्र के उपचुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे (जनलोकपाल बिल) का सहारा लेना सही है? क्या कांग्रेस को वोट न देने की अपील करके अन्ना सीधे तौर पर दूसरे राजनीतिक दलों को फायदा नहीं पहुंचा रहे हैं? क्या कांग्रेस के अलावा सभी राजनीतिक दल भ्रष्टाचार से मुक्त हैं?

कांग्रेस विरोध रुख अपनाने पर होने वाली आलोचनाओं पर टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल का कहना है कि अगर भाजपा जनलोकपाल विधेयक के समर्थन के अपने वादे को पूरा नहीं करती तो अन्ना की टीम उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उसके खिलाफ भी अभियान चला सकती है।

अगर ऐसा होता है तो उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा का विरोध करने पर भ्रष्टाचार के कई रिकॉर्ड बना चुकी मायावती सरकार को एक बार फिर से सत्ता में आने का मौका नहीं मिलेगा? टीम अन्ना इस तरीके से किस तरह की व्यवस्था सुधार रही है?

अगर अन्ना और उनकी टीम सचमुच व्यस्था सुधारना चाहती है तो उन्हें चुनाव लड़ना ही होगा। अगर चुनाव के दौरान अन्ना और उनकी टीम यह कह रहे हैं कि अमुक राजनीतिक दल को वोट न दें तो उन्हें यह भी बताना पड़ेगा कि फिर वोट किसे दें और क्यों दें। या फिर अन्ना खुद ही क्यों न चुनाव के मैदान में आएं और पावर में आने के बाद बेहतर व्यवस्था के लिए काम करें। कई दिग्गज नेता भी अन्ना और उनके समर्थकों को सक्रिय राजनीति में आकर व्यवस्था सुधारने का इशारा दे चुके हैं।

अब यह तो समय आने पर ही पता चलेगा कि अन्ना और उनके योद्धा राजनीति के रणक्षेत्र में उतरे बिना ही भष्ट हो चुकी व्यवस्था के विरुद्ध लड़ाई जारी रखते हैं या भारतीय राजनीति के महासमर में एक और ताकतवर पक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है।



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