भारत को सिडनी टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के हाथों एक पारी और 68 रन से हार का सामना करना पड़ा। यह भारत की विदेशी धरती पर लगातार छठी हार है। जब से डंक फ्लेचर टीम इंडिया के कोच बने हैं, तब से भारत ने केवल कमजोर वेस्टइंडीज को ही दो टेस्ट में मात दी है, लेकिन ये दो टेस्ट भी उसने छह टेस्ट मैचों में से जीते हैं। वेस्टइंडीज जैसी कमजोर टीम से छह में से दो टेस्ट जीत लेना कोई महान उपलब्धि नहीं है।
पिछले साल इंग्लैंड दौरे पर भारतीय टीम एक मैच भी नहीं जीत पाई। टेस्ट सिरीज 0-4 से गंवाई तो गंवाई, लेकिन वनडे और टी-20 में भी टीम इंडिया को एक भी जीत नसीब नहीं हुई। खास बात यह कि जब टीम इंडिया इंग्लैंड दौरे पर पहुंची थी तब वह दुनिया की नंबर एक टीम थी। अब नंबर एक टीम को एक मैच तो जीतना ही चाहिए था, लेकिन यह नंबर एक टीम तालिका में नीचे से नंबर एक साबित हुई।
डंकन फ्लेचर की कोचिंग में टीम को सिर्फ नाकामी ही मिली है। इंग्लैंड दौरे की असफलता के बाद अब भारत ऑस्ट्रेलिया में भी टेस्ट सिरीज में 0-2 से पीछे है। हार का यह अंतर बढ़ता ही जा रहा है, ठीक उसी तरह जैसा कि इंग्लैंड दौरे पर हुआ था।
फ्लेचर को कोच नियुक्त इसीलिए किया गया था कि उन्हें इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया टीमों के साथ साथ वहां की परिस्थितियों के बारे में भी अच्छी जानकारी है, लेकिन वे अपने अनुभव से टीम इंडिया को कोई लाभ नहीं पहुंचा सके। फ्लेचर के बारे में ऑस्ट्रेलियाई दौरे के बाद बोर्ड को कोई न कोई फैसला लेना होगा।
ऐसा नहीं है कि टीम इंडिया की इन असफलताओं के पीछे फ्लेचर अकेले जिम्मेदार हैं, बल्कि कई और कारक हैं, जिनसे भारतीय टीम की यह गत हुई है।
वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर, महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली जैसे धाकड़ बल्लेबाज उपमहाद्वीप के विकेटों पर दुनिया के किसी भी गेंदबाज की मट्टी पलीत कर सकते हैं, लेकिन यही सूरमा ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के विकेटों पर साधारण गेंदबाजों के सामने मेमने साबित होते हैं। इसकी वजह क्या है? इसकी वजह हैं हमारे यहां के बेजान विकेट। हमारे बल्लेबाजों को सपाट विकेटों पर खेलने की इतनी आदत हो गई है कि वे तेज और उछाल भरे विकेटों पर खड़े भी नहीं रह सकते।
लेकिन सिडनी टेस्ट में पहले दिन के खेल के बाद विकेट आसान हो गया था, इसके बावजूद वीरेंद्र सहवाग, महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली दो अंकों में भी नहीं पहुंच सके और आउट हो गए। सिडनी में हार के कई कारण हैं, लेकिन अहम बात यह है कि क्या भारतीय कप्तान विदेशी धरती पर मिली लगातार छठी हार से सबक लेकर बेहतर प्रदर्शन करने की दिशा में कुछ कड़े कदम उठाएंगे?
डंकन फ्लेचर की कोचिंग में टीम को सिर्फ नाकामी ही मिली है। इंग्लैंड दौरे की असफलता के बाद अब भारत ऑस्ट्रेलिया में भी टेस्ट सिरीज में 0-2 से पीछे है। हार का यह अंतर बढ़ता ही जा रहा है, ठीक उसी तरह जैसा कि इंग्लैंड दौरे पर हुआ था।
फ्लेचर को कोच नियुक्त इसीलिए किया गया था कि उन्हें इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया टीमों के साथ साथ वहां की परिस्थितियों के बारे में भी अच्छी जानकारी है, लेकिन वे अपने अनुभव से टीम इंडिया को कोई लाभ नहीं पहुंचा सके। फ्लेचर के बारे में ऑस्ट्रेलियाई दौरे के बाद बोर्ड को कोई न कोई फैसला लेना होगा।
ऐसा नहीं है कि टीम इंडिया की इन असफलताओं के पीछे फ्लेचर अकेले जिम्मेदार हैं, बल्कि कई और कारक हैं, जिनसे भारतीय टीम की यह गत हुई है।
वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर, महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली जैसे धाकड़ बल्लेबाज उपमहाद्वीप के विकेटों पर दुनिया के किसी भी गेंदबाज की मट्टी पलीत कर सकते हैं, लेकिन यही सूरमा ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के विकेटों पर साधारण गेंदबाजों के सामने मेमने साबित होते हैं। इसकी वजह क्या है? इसकी वजह हैं हमारे यहां के बेजान विकेट। हमारे बल्लेबाजों को सपाट विकेटों पर खेलने की इतनी आदत हो गई है कि वे तेज और उछाल भरे विकेटों पर खड़े भी नहीं रह सकते।
लेकिन सिडनी टेस्ट में पहले दिन के खेल के बाद विकेट आसान हो गया था, इसके बावजूद वीरेंद्र सहवाग, महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली दो अंकों में भी नहीं पहुंच सके और आउट हो गए। सिडनी में हार के कई कारण हैं, लेकिन अहम बात यह है कि क्या भारतीय कप्तान विदेशी धरती पर मिली लगातार छठी हार से सबक लेकर बेहतर प्रदर्शन करने की दिशा में कुछ कड़े कदम उठाएंगे?
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