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व्यापार 2011 : अर्थजगत के लिए बुरा सपना

साल 2011 अपने अंतिम पड़ाव पर है और दुनिया 2012 के स्वागत को आतुर है। वर्ष 2011 पर एक नजर डालें तो अर्थजगत को इस साल ने बेहद परेशान किया है। निवेशक हैरान हैं, व्यापारी परेशान, आम आदमी की तो हालत ही खस्ता है।

आम आदमी के लिए लोन लेना महंगा हुआ है और बचत मुश्किल। आर्थिक मंदी एक बार फिर दरवाजा खटखटाने लगी है। 2008 की स्थिति दोहराने संबंधी आशंका के चलते निवेशक अपना पैसा निकालने के बारे में विचार कर रहे हैं। एविएशन इंडस्ट्री संकट में है, ऑटोमोबाइल सेक्टर इस साल को कभी याद नहीं करना चाहेगा। महंगाई के सरकारी आंकड़े भी मानों गरीब जनता को जी भर कर छलने पर आमादा हैं। सभी चाहते हैं कि नया साल नया सवेरा लेकर आए।

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*शेयर बाजार के हाल बेहाल- देश में आर्थिक विकास की धीमी पड़ती रफ्तार से निवेशकों को 2011 ने निराश किया। दिवाली पर सेंसेक्स 18 हजारी था पर साल खत्म होते-होते यह 15 हजार पर आ गया। यह पिछले 28 महीनों में सेंसेक्स का न्यूनतम स्तर है। निफ्टी भी लुढ़कते-लुढ़कते 4600 पर पहुंच गया। सारे ही घटक बाजार को नकारात्मक दिशा में धकेल रहे हैं। बाजार में गिरावट से न केवल बड़ी कंपनियां प्रभावित हुईं, बल्कि छोटे शेयरों पर उतार-चढ़ाव की मार ज्यादा पड़ती नजर आई। मिड कैप कंपनियों में तो निवेश भी बुरी तरह प्रभावित हुआ। निवेशक हैरान है उन्हें समझ नहीं आ रहा है की बाजार में बने रहे, गिरते बाजार का फायदा उठाए या घाटे में पैसा निकालकर बाहर हो जाए।

*सालता रहा महंगाई का दर्द : 2011 में महंगाई पर सरकारी आंकड़ों का सच भी सामने आ गया। एक ओर जनता महंगाई से परेशान रही वहीं सरकारी आंकड़े कह रहे थे कि खाद्य वस्तुओं से दाम तेज‍ी से कम हो रहे हैं। सरकार के अनुसार खाद्य वस्तुओं के दाम आंकड़ों में दहाई अंकों से कम होकर मात्र 0.42 प्रतिशत के स्तर पर आ गई पर आम आदमी तो अभी भी बाजार से महंगे भाव में ही खाने का सामान खरीद रहा है। सरकार के अनुसार महंगाई का यह छह वर्ष का निम्नतम स्तर है।

*पेट्रोल के बढ़ते दाम से निकली आम आदमी की जान : पिछले साल की तरह इस साल भी तेल के खेल में आम आदमी की हालत पस्त कर दी। पेट्रोल के दाम पर सरकारी नियंत्रण खत्म होने का फैसला 2010 में हुआ था पर इसके सही मायने 2011 में पता चले। कंपनियों ने अलग-अलग कारणों से इसके दाम बढ़ाती चली गई। हालांकि साल के अंत में तीन बार इसके दाम तीन बार कम किए गए जो महंगाई के दौर में जनता के लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान थे। डीजल और रसोई गैस के दाम भी इस साल बढ़ाए गए।



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